शिवम् सविता
अब खाकी वर्दी में सजा डाकिया नजर नहीं आताऔर अगर भूले भटके दिख भी जाए तो पहले जैसी खुशी नहीं होती क्योंकि सूचना क्रांति के इस दौर में कागज की चिट्ठी पत्री को फोन, एसएमएस और ई-मेल संदेशों ने कोसों पीछे छोड़ दिया है। जिस तेजी से अत्याधुनिक संचार सेवा का प्रसार हो रहा है उससे लगता है कि बहुत जल्द ही डाक और डाकिया केवल कागजों में सिमटे रह जाएंगे।एक समय था जब हर घर को डाकिया कहलाने वाले मेहमान का बेसब्री से इंतजार होता था और दरवाजे पर उसके कदमों की आहट घर के लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट ला देती थी। लेकिन आज सूचना क्रांति के इस दौर में यह डाकिया लुप्त होता जा रहा है। अब तो डाकिया नजर ही नहीं आता जबकि पहले उसकी आहट से लोग काम छोड़ कर दौड़ पड़ते थे।
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