कानपुर। भगवान गणेश जी के अनेक नाम हैं लेकिन ये बारह नाम प्रमुख हैं सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। उपरोक्त द्वादश नाम नारद पुराण में पहली बार गणेश के द्वादश नामवलि में आया है। विद्यारम्भ तथा विवाह के पूजन के प्रथम में इन नामो से गणपति की अराधना का विधान है। पिता भगवान शंकर, माता भगवती पार्वती, भाई श्री कार्तिकेय (बड़े भाई), बहन अशोकसुन्दरी, पत्नी दो बच्चे ऋद्धि, सिद्धि दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेश जी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं। पुत्र दो शुभ और लाभ प्रिय भोग (मिष्ठान्न) मोदक, लड्डू, प्रिय पुष्प लाल रंग के, प्रिय वस्तु दुर्वा (दूब), शमी पत्र, अधिपति जल तत्व के प्रमुख अस्त्र पाश, अंकुश, वाहन मूषक, गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन डिंक नामक मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेश जी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्रों के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। इसलिए इन्हें प्रथम पूज्य भी कहते हैं। गणेश की उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपत्य कहलाता है। प्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उनकी अत्यंत रूपवती और पतिव्रता पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और मनोमयी गृह कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहां आया और उसने अनुपम लावण्यवती मनोमयी को देखा तो व्याकुल हो गया और जय श्री राम, ओम, ओम कहने लगा। कौंच ने ऋषि पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और कांपती हुई ऋषि पत्नी उससे दया की भीख मांगने लगी। उसी समय सौभरि ऋषि आ गए। उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा तूने चोर की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है। इस कारण तू मूषक होकर धरती के नीचे और चोरी करके अपना पेट भरेगा। कांपते हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की दयालु मुनि अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें। ऋषि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहां गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे हर युग में गणेश जी ने अलग-अलग अवतार लिए तब तू उनका डिंक नामक वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे। सारे विश्व तब तुझें श्रीडिंकजी कहकर वंदन करेंगे। भगवान गणेश को जन्म न देते हुए माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की। उस समय उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार में गणेश की रचना के बाद माता पार्वती ने उनको घर की पहरेदारी करने का आदेश दिया। माता ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के लिये गणेश किसी को भी घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान शंकर आए और बोले पुत्र यह मेरा घर है मुझे प्रवेश करने दो लेकिन पुत्र गणेश ने भगवान शंकर जी को प्रवेश पर रोक लगा दी जिससे गुस्सा होकर भगवान शंकर ने गणेश जी का सर धड़ से अलग कर दिया। गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता पार्वती व्याकुल हो उठीं। तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ और उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सर लगा दिया। उनको प्रथम पूज्य का वरदान मिला इसीलिए सर्वप्रथम गणेश की पूजा होती है। पुलिस के इंटेलिजेंस ब्रांच में कार्यरत प्रिय बड़े भाई चन्द्रकान्त बिस्वाल जी के साथ संवाददाता लवकुश आर्या के प्रयाशों से मो लेखा मो दुनिया ग्रुप के परिचालक खुशिराम साहू एवं नीति शिक्षा परिवार ग्रुप के परिचालक दुर्गाशंकर दे के मिलित उद्यम से सोशल मीडिया द्यारा एक कवि सम्मिलन आयोजित किया गया। जिसमें 250 कवियों ने ऑनलाइन प्रतिभाग में शामिल हुए प्रसंग सिद्धि विनायक के ऊपर कविता प्रस्तुत किया गया जज भारती रथ मैडम और मन्मथ स्वाईं, संग्राम केसरी राउतराय, सौम्य रंजन दास द्यारा उन कविताओं के शीर्ष दस कविता के कवियों शुभ्रा सुचित्रा मोहान्ती,आर्त त्राण खूंटीआ, बीरेंद्र पाणी ,पद्मन रणा, कल्पना राउत, गोदा बरिश दास, प्रकाश चंद्र बरिहा, सरोजिनी मिश्र, सौभाग्यवती नन्द एवं निहारिका पण्डा को ग्रुप परिचालक द्यारा मानपत्र प्रदान किया गया।
Monday, August 24, 2020
हिंदी साहित्य ऑनलाइन कवि सम्मेलन किया गया आयोजित
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August 24, 2020
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