आज के समय में हो रही आधुनिकीकरण से प्रदूषण पूरे विश्व में निरंतर बढ़ रहा है जो समस्त प्राणियों के लिए संकट की घड़ी बन सकता है भारत 2015 में प्रदूषण से हुई मौतों के मामलों में 188 देशों की सूची में पांचवें स्थान पर रहा जबकि 2020 में लाकडाउन की शुरुआत से ही देश में प्रदूषण के आंकड़ों में काफी इजाफा आया है।
संपूर्ण विश्व में फैली गंभीर बीमारी कोरोनावायरस को लेकर हर राज्य में रोस्टर अनुसार लाकडाउन लगाया गया।क्योंकि लाकडाउन के अलावा इस बीमारी से बचने का कोई दूसरा उपाय नहीं था। लॉकडॉउन के बाद देश की आयात निर्यात और अन्य सुविधाएं सीमित हो गईं जिससे आर्थिक समस्या आ गयी।वहीं गरीब मजदूर वर्ग के लोगों का जीना दुश्वार हो गया जिससे उन्हें एक एक रोटी को लाले पड़ने लगे।अब उनके सामने अपने परिवार को बचाने का संकट घेरने लगा जिससे उन्होंने अपने गांवों को जाने के लिए पैदल ही 1500 से 3000 किलोमीटर तक की दूरी तय कर ली।वहीं दूसरी तरफ कॉरपोरेट घरानों को भी काफी आर्थिक हानि से गुजरना पड़ा क्योंकि कुछ जरूरी सेवाओं व कार्यों को छोड़कर सारे काम धंधे बंद थे।
इससे देश के सामने दिक्कतें तो बहुत रहीं पर यह लॉकडाउन पर्यावरण के लिए वरदान भी साबित हुआ है।जिससे पर्यावरण को काफी फायदा भी देखने को मिला है।अचानक प्रदूषण इतना कम हो गया है कि कई बड़े दिल्ली जैसे शहरों में लोग खुली हवा में सांस लेने में आसानी महसूस कर रहे हैं।प्रदूषण कम होने से संवेदनशील पक्षी,जानवर आदि भी निरोग व प्रदूषण से मुक्त होते जा रहे हैं। पर्यावरण में कई ऐसे जानवर है जो प्रदूषण को बिल्कुल भी नहीं सह पाते और अपने बचाव के लिए वातानुकूलित स्थानों पर चले जाते हैं।लेकिन इस वक्त सभी लोग स्वतंत्र महसूस कर रहे है।
मेरा मानना यह है कि क्यों ना प्रशासन एक आध साल में कुछ समय के लिए सेवाओं को सीमित कर दिया करे ताकि प्रदूषण नियंत्रण बना रहे और देश को आर्थिक हानि से भी ना गुजरना पड़े।समय समय पर योजना बनाकर साल दो साल में सेवाओं को सीमित करने से बढ़ रहे प्रदूषण को रोका जा सकता है।जिससे सभी प्रकार के प्राणियों को पर्यावरण में शुद्ध आक्सीजन प्राप्त हो सके।जिससे सभी का जीवन निर्वाह सही तरीके से चलता रहे और हम ऐसे वन्य जीवों,प्राणियों को बचा सकें जिनकी जनसंख्या लगातार घटती चली जा रही है जो चिंता का विषय है।
संपूर्ण विश्व में फैली गंभीर बीमारी कोरोनावायरस को लेकर हर राज्य में रोस्टर अनुसार लाकडाउन लगाया गया।क्योंकि लाकडाउन के अलावा इस बीमारी से बचने का कोई दूसरा उपाय नहीं था। लॉकडॉउन के बाद देश की आयात निर्यात और अन्य सुविधाएं सीमित हो गईं जिससे आर्थिक समस्या आ गयी।वहीं गरीब मजदूर वर्ग के लोगों का जीना दुश्वार हो गया जिससे उन्हें एक एक रोटी को लाले पड़ने लगे।अब उनके सामने अपने परिवार को बचाने का संकट घेरने लगा जिससे उन्होंने अपने गांवों को जाने के लिए पैदल ही 1500 से 3000 किलोमीटर तक की दूरी तय कर ली।वहीं दूसरी तरफ कॉरपोरेट घरानों को भी काफी आर्थिक हानि से गुजरना पड़ा क्योंकि कुछ जरूरी सेवाओं व कार्यों को छोड़कर सारे काम धंधे बंद थे।
इससे देश के सामने दिक्कतें तो बहुत रहीं पर यह लॉकडाउन पर्यावरण के लिए वरदान भी साबित हुआ है।जिससे पर्यावरण को काफी फायदा भी देखने को मिला है।अचानक प्रदूषण इतना कम हो गया है कि कई बड़े दिल्ली जैसे शहरों में लोग खुली हवा में सांस लेने में आसानी महसूस कर रहे हैं।प्रदूषण कम होने से संवेदनशील पक्षी,जानवर आदि भी निरोग व प्रदूषण से मुक्त होते जा रहे हैं। पर्यावरण में कई ऐसे जानवर है जो प्रदूषण को बिल्कुल भी नहीं सह पाते और अपने बचाव के लिए वातानुकूलित स्थानों पर चले जाते हैं।लेकिन इस वक्त सभी लोग स्वतंत्र महसूस कर रहे है।
मेरा मानना यह है कि क्यों ना प्रशासन एक आध साल में कुछ समय के लिए सेवाओं को सीमित कर दिया करे ताकि प्रदूषण नियंत्रण बना रहे और देश को आर्थिक हानि से भी ना गुजरना पड़े।समय समय पर योजना बनाकर साल दो साल में सेवाओं को सीमित करने से बढ़ रहे प्रदूषण को रोका जा सकता है।जिससे सभी प्रकार के प्राणियों को पर्यावरण में शुद्ध आक्सीजन प्राप्त हो सके।जिससे सभी का जीवन निर्वाह सही तरीके से चलता रहे और हम ऐसे वन्य जीवों,प्राणियों को बचा सकें जिनकी जनसंख्या लगातार घटती चली जा रही है जो चिंता का विषय है।
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