कानपुर 9 अप्रैल 2018 (विशाल तिवारी) पहले विद्यालयों को शिक्षा का मंदिर कहा जाता था मगर कुछ सालों से शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव आ गए हैं। दिन पर दिन बढ़ती प्राइवेट स्कूलों की संख्या अभिभावकों की जेब खोखली करती नजर आ रही है। वर्तमान समय में स्कूलों ने शिक्षा के क्षेत्र को व्यवसाय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। अर्थात अब प्राइवेट स्कूल शिक्षा का मंदिर नहीं बल्कि कमाई का साधन बन गए है। हर गली हर नुक्कड़ में बने ये प्राइवेट स्कूल अभिभावकों को शिक्षा के नाम पर लूटकर अपनी जेब भर रहे हैं। जिस कारण मध्यम वर्गीय एवं गरीब तबके के परिवारों को अपने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए पढ़ाई में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। अशोक नगर स्थित फातिमा कान्वेंट स्कूल में मनमानी फीस बढ़ोतरी को लेकर शनिवार को अभिभावकों का गुस्सा फूट पड़ा। सैंकड़ों से अधिक अभिभावकों ने स्कूल के बाहर फीस बढ़ोतरी को लेकर विरोध प्रदर्शन किया और बढ़ी हुई फीस को वापस लेने की मांग की। अभिभावक फीस बढ़ोतरी के खिलाफ सुबह 9 बजे स्कूल के गेट के बाहर इकट्ठा हो गए। इस दौरान बरसात भी अभिभावकों को डिगा नहीं सकी। हाथ में बैनर-पोस्टर लिए अभिभावक स्कूल की मनमानी के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे। उनका कहना था कि स्कूल मनमानी तरीके से फीस बढ़ाकर अभिभावकों को परेशान कर रहा है और सीबीएसई के नियमों का भी उल्लंघन कर रहा है।
छात्रों के अभिभावकों से बात की तो एक महिला अभिभावक का कहना यह था कि इस स्कूल में स्कूल कमेटी के लिए पैसा सब कुछ है। बच्चों का भविष्य कुछ भी नहीं यहां पर ड्रेस किताबें स्टेशनरी आदि के नाम पर अभिभावकों को लूटा जा रहा है। कमीशन खोरी के चलते किताबें, ड्रेस सब कुछ काफी ऊंचे दामों पर मिलता हैं जिसका सीधा कमीशन स्कूलों को भी पहुंचता है। एक और अभिभावक का कहना था कि फीस वृद्धि को मिडिल क्लास के लोग वहन नहीं कर सकते। फीस वृद्धि के कारण मजबूर होकर प्राइवेट स्कूलों से अपने बच्चों का नाम कटवा कर सरकारी स्कूलों में लिखाना पड़ता है। जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती रहती है, किताबों की दुकान फिक्स कर दी जाती हैं। किताबों के ऊपर अगर 80 रुपये दाम लिखे होते हैं तो उस पर चिट लगाकर उसका मूल्य 300 रुपये कर दिया जाता है। जिससे अभिभावकों की जेबों पर बहुत गहरा असर पड़ रहा है। अगर इसी तरह लूट घसूट चलती रही तो मिडिल क्लास एवं निम्न वर्ग का आदमी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में कभी नहीं पढ़ा सकेगा।
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